बिहार का प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय कभी पूरे भारत की शान हुआ करता था. 14 हेक्टेयर में फैले इस ज्ञान के महासागर के अंदर शिक्षा का ऐसा दीप प्रज्ज्वलित था जिसके प्रकाश में भारत और पड़ोसी देश ही नही बल्कि यूनान, चीन, रूस और पर्शिया तक के छात्र अध्ययन किया करते थे. आज जहाँ स्कूलों में छात्र-शिक्षक ratio की बात होती है तो ये याद करने लायक है कि नालन्दा विश्वविद्यालय में 10 हजार छात्रों पे 2 हजार शिक्षक थे. कैंपस के अंदर कई तरह की इमारतें थी जो अलग-अलग देशों के राजाओं के दान से बनाई गई थी. इंडोनेशिया के राजा द्वारा बनवाए गए ढांचे का भी प्रमाण मिलता है. शिक्षा के इस महान धरोहर की सबसे बड़ी खासियत थी इसकी library जो कि 90 लाख किताबों का घर हुआ करती थी. जी हाँ, नब्बे लाख. कहते हैं बख्तियार खिलजी ने जब इस library को आग के हवाले किया था तो 3 महीने तक इसमे पड़ी किताबें जलती रही थी.
बख्तियार खिलजी के इस आक्रमण के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है. उसे एक ऐसा रोग हो गया था जिसे ठीक करने के लिए बड़े-बड़े चिकित्सक लगाए गए लेकिन सबने हार मान ली. अंत मे एक बौद्ध भिक्षु ने आयुर्वेद की मदद से उसका सफल इलाज किया और यही बात उसे चुभ गई. उसने भारत की महान परम्पराओं के स्रोत को ही मिटाने की ठान ली क्योंकि वो इस बात से हतप्रभ था कि यहाँ के लोग बौद्धिक रूप से इतने सम्पन्न हैं. नालन्दा की library तीन बड़े इमारतों में फैली हुई थी जिसमे एक नौ मंजिले इमारत में सबसे पवित्र पुस्तकें रखी हुई थी. आक्रमण के समय कई हिंदुओं खासकर ब्राह्मणों को मार डाला गया था और कुछ को तो जिंदा ही जला दिया गया था.
तिब्बत के एक लेखक ने जब नालन्दा की बर्बादी के 42 सालों बाद सन 1235 में यहाँ का दौरा किया तो देखा कि तबाही के भयानक मंजर की याद दिलाते खंडहर में एक बूढ़े शिक्षक राहुल श्रीभद्र 70 छात्रों की एक कक्षा चला रहे थे.
गणित, खगोल, आयुर्वेद, योग और अर्थ सहित तमाम विषयों की जानकारी इसके साथ ही लुप्त होती चली गई. आज माहौल अनुरूप है और समय अनुकूल है कि हम फिर से इतिहास के गर्भ में छिपे बेशकीमती चीजों को ढूंढे और उसका लाभ पूरे विश्व को मिले. क्या बिहार का पुराना गौरव वापस आ पाएगा?
Source: My India My Glory with thanks to Rayvikumar Pillay