अभी कुछ दिनों पहले ही देश की शीर्ष अदालत ने दिवाली पर पटाखों को लेकर एक अहम् फैसला सुनाया जो कि काफी चर्चा का भी विषय बना. अगर सीधे तौर पर देखें तो सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में दिया गया निर्णय बिलकुल साफ़ नजर आता है लेकिन आपको ये जानना चाहिए कि ये मीडिया में दिख रहे हेडलाइंस से कहीं ज्यादा पेंचीदा है और भ्रम पैदा करने वाला है. सोशल मीडिया में लोगों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा धार्मिक त्योहारों को मनाने की परंपरा में दखल देने वाला करार दिया. आइये जानते हैं कि कोर्ट के इस फैसले में ऐसी क्या बातें हैं जिस से भ्रम और दुविधा का माहौल बन रहा है.
क्या सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को नजरअंदाज किया?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में ये साफ़ दिखता है कि देश के कुछ भागों को और उनके त्यौहार मनाने के पारंपरिक तरीकों और समय को नजरअंदाज किया गया है. जस्टिस सीकरी और जस्टिस भूषण बेंच की बेंच ने दिवाली के मौके पर पटाखे उड़ाने के लिए देश भर में रात 8 से 10 बजे तक का समय मुक़र्रर किया है और इस समयावधि के अलावे किसी अन्य समय पर पटाखों के प्रयोग को अदालत की अवमानना मानी जाएगी.
आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि तमिलनाडु में दीवाली (जिसे वहां पर दीपावली कहते हैं) मनाने का रामायण से कोई सम्बन्ध नहीं है जबकि उत्तर भारत में यह पर्व भगवान राम के लंका से वापस अयोध्या लौटने की ख़ुशी में मनाया जाता है. दक्षिण भारत में दीपावली नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर के वध किये जाने की याद में मनाई जाती है. तमिलनाडु में यह पर्व नरक चतुर्दशी के दिन सुबह मनाया जाता है जबकि उत्तर भारत में अमावस्या की रात को.
ऐसे में ये समस्या खड़ी हो गई है कि तमिलनाडु में जब दीपावली का पर्व 6 नवम्बर की सुबह मनाया जायेगा तो पटाखे रात के समय क्यों छोड़े जाएँ? जैसा कि सर्वविदित है हिन्दू धर्म में पर्व-त्योहारों के दिन और समय खगोलीय स्थितियों की गणना के आधार पर तय किये जाते हैं, ऐसे में कोर्ट द्वारा सुबह मनाये जाने वाले पर्व के उत्सव को रात के समय शिफ्ट कर देना कहाँ तक उचित है?
क्या यूपी-बिहार के सबसे बड़े पर्व की अनदेखी हुई?
यूपी-बिहार का सबसे बड़ा महापर्व है छठ जिसे मॉरीशस और अमेरिका तक रहने वाले बिहारी काफी धूम-धाम से मनाते हैं. इसे देश-भर में रहने वाले बिहार के लोग मनाते हैं जिसमे उगते और डूबते सूरज को अर्ध्य दिया जाता है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि दीवाली, गुरूपरब और ऐसे सभी त्योहार जिसमे आमतौर पर पटाखों का प्रयोग किया जाता है उन सबकी समयावधि रात 8 से 10 ही होगी. इस से छठ महापर्व मनाने वाले लोग भी पटाखों का प्रयोग नही कर पाएंगे क्योंकि छठ की पूजा सुबह सूर्योदय या शाम सूर्यास्त के समय की जाती है. ऐसे में रात 8 से 10 तक वाली समयावधि का इसमे कोई महत्व नही रह जाता.
क्या प्रचार-प्रसार से कम होगा पटाखों का प्रयोग?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में सरकारों को यह भी निर्देश दिया कि मीडिया के माध्यम से पब्लिक में पटाखों को लेकर एक “जागरूकता अभियान” चलाया जाए जिसमे पटाखों से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को अवगत कराया जाए.
ऐसे में ये सवाल भी लाजिमी हो जाता है कि सिगरेट-गुटखे को लेकर जो इतने बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया गया है उसका क्या निष्कर्ष निकला है? अभी पिछले साल ही हुए एक सर्वे के मुताबिक भारत मे अभी भी 28 प्रतिशत से ज्यादा लोग तम्बाकू का सेवन कर रहे हैं. ऐसा तब है जब गुटखे, सिगरेट इत्यादि के डब्बों पर भयंकर तस्वीरों के साथ इसके दुष्प्रभाव छपे होते हैं.
वैसे तम्बाकू की पटाखों से तुलना करना बेमानी होगी क्योंकि तम्बाकू से हर छह सेकंड में एक भारतीय अपनी जान गंवा देता है वहीं पटाखों से ज्यादा प्रदूषण गाड़ियों से निकले वाले धुएं, फैक्टरियों से निकलने वाले कचरे, कृषि उत्पादों को जलाने इत्यादि से पैदा होता है लेकिन अबतक इसपर ऐसा कोई बड़ा निर्णय नही लिया गया है जैसा कि पटाखों के बारे में हुआ.
कारोबार में घाटे की भरपाई कैसे होगी?
अदालत के फैसले से पटाखा कारोबारियों में भी काफी गम का माहौल हैं क्योंकि बिना कोई वैकल्पिक स्थिति दिए उनके व्यापार को छीन लिया गया है., अचानक दीवाली से 10-15 दिन पहले आये इस फैसले के कारण उनमे काफी उहापोह की स्थिति है. वैसे आपको पता होना चाहिए कि पटाखों के बाजार में जो कम्पनियां शामिल है उसमें से अधिकतर लोकल लेवल पर काम करती है यानी कि किसी MNCs का इनसे कोई लेना देना नही है.
भारत मे पटाखों के कारोबार को कुल बीस हजार करोड़ का मापा गया है. इसमे से आधे मूल्य के पटाखों को बनाने का काम तो अकेले तमिलनाडु के शिवकाशी जिले या उसके आसपास वाले इलाके से ही होता है. ऐसे मे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद इस असंगठित कारोबार के व्यापार के पूरे पचास प्रतिशत तक गिरने की संभावना है.
पुलिस का रोल क्या होगा?
कोर्ट ने दिवाली के मौके पर “ग्रीन पटाखों” के पयोग का आदेश दिया है और पुलिस को इस बात के ध्यान रखने के आदेश भी दिए हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या पुलिस के पास ऐसे उपकरण हैं जो पटाखों में ये जांच कर सकें कि कौन से पटाखे “ग्रीन पटाखों” के समूह में आते हैं और उनमें कौन-कौन से रसायन कितनी मात्रा में हैं? असंगठित कारोबार होने के कारण पुलिस के लिए ये एक खासा मुश्किल काम है.
वैसे भी इस तरह के पर्व-त्योहार के मौकों पर आतंकवादी खतरों, चोरी की वारदातों और साम्प्रदायिक टेंशन को देखते हुए पुलिस काफी चौकन्नी रहती है और इनसे निपटना पुलिस की पहली प्राथमिकता होती है. ऐसे में पुलिस पटाखों की जांच करने निकल जाए तो फिर आपराधिक वारदातों को कौन रोकेगा.
कुल मिलाकर देखें तो इस फैसले में इतने सारे पेंच है जो भ्रम पैदा करते हैं. आशा है कोर्ट में आगे की सुनवाइयों में इन बातों का कुछ निदान निकलेगा लेकिन फिलहाल जल्दबाज़ी में दिए गए इस फैसले ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है
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