स्वीकार्यता के नये मानदंड – I

आइए आज हम एक नजर उन Top-5 लोगों पर डालते हैं जो हमारे देश की secular मीडिया को स्वीकार्य हैं –

  1. लालू यादव – लालू कुछ भी बोलें तो उसे एक humour की तरह हांथोहाथ लिया जाता है और वो एक हास्यकवि की तरह पूजे जाते हैं. वो अधिकारियों को चप्पल से मारने की धमकी दे सकते हैं और सार्वजनिक रूप से गालियां भी बकते रहते हैं. उनसे चुनाव के समय चारा घोटाले को लेकर सवाल नही पूछे जाते. बावजूद इसके कि देश की न्यायपालिका ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया हो, वो स्वीकार्य हैं.
  2. मुलायम सिंह यादव – मुलायम रामभक्तों पर गोली चलवा कर उनकी जान ले सकते हैं लेकिन उनसे इस मसले पर तीखे सवाल नही पूछे जा सकते हैं. कारण ये है क़ि नक्सली तो हमारे देश के अपने लोग हैं और कश्मीर में सेना के जवानों को पत्थर चलाकर घायल करनेवाले stone pelters तो हमारे रिश्तेदार ही हैं लेकिन क्या मजाल कि आप राम मंदिर के लिए आंदोलन करें.
  3. मायावती – आप हिन्दू एकता की बात नही कर सकते क्योंकि इस से माहौल खराब होता है और आप दंगे भड़काने के आरोपी कहलाएंगे लेकिन हाँ अगर आप मुस्लिम एकता या दलित-मुस्लिम एकता की बात करते हैं तो आप मायावती की तरह social engineer कहलाएंगे. वो जगह जगह करोड़ों की लागत से अपनी मूर्तियां लगवाती हैं, उनके जन्मदिन पर आम जनता से जबर्दस्ती चंदे वसूले जाते हैं और उच्चाधिकारी उनके जूते पर लगी गन्दगी साफ़ करते हैं. लेकिन उनसे क्या मजाल की कोई पत्रकार इन सब पर सवाल पूछ दे और हाँ वो भी एक सर्व स्वीकार्य नेता हैं.
  4. फारुख एवं उमर अब्दुल्ला – फारुख अब्दुल्ला अलगाववादियों का समर्थन करते हैं और उनके बेटे उमर अफजल गुरु को फांसी दिए जाने का कड़ा विरोध करते हैं लेकिन मीडिया को अब्दुल्ला परिवार से कोई समस्या नही है. फारुख भारतीय हैं और उन्हें हमसे ये पूछने का भी पूरा हक है कि क्या POK तम्हारे बाप का है और उमर भारत में हुए आतंकी हमलों को लेकर पाकिस्तान को clean-chit दे सकते हैं लेकिन मीडिया को दिक्कत केवल पाकिस्तान और आतंकवाद के विरोधियों से ही है.
  5. असदुद्दीन ओवैसी – .हमारे देश का secular मीडिया किसी को भी अपने आप को हिंदुओं का नेता कहने की इजाजत नही देता लेकिन ओवैसी minority की आवाज माने जाते हैं. न कही उनकी सरकार है और ना ही हैदराबाद से बाहर उनकी उपस्थिति फिर भी वो नियमित अंतराल पर अलग अलग debates और shows में मुस्लिमों के वकील के तौर पर invite किये जाते रहे हैं. वो भारत माता की जय बोलने से साफ़ मना करते हैं और कहीं भी उनसे उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी के कारनामों के बारे में सवाल नही पूछे जाते.